भक्तामर स्त्रोत- 2
Sanskrit Sloka
यः संस्तुतः सकल वाङ्मय तत्वबोधा ।
द् उद्भूत बुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः ॥
स्तोत्रैर्जगत्त्रितय चित्त हरैरुदरैः ।
स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥२॥
Hindi Meaning
सम्पूर्णश्रुतज्ञान से उत्पन्न हुई बुद्धि की कुशलता से इन्द्रों के द्वारा तीन लोक के मन को हरने वाले, गंभीर स्तोत्रों के द्वारा जिनकी स्तुति की गई है उन आदिनाथ जिनेन्द्र की निश्चय ही मैं (मानतुंग) भी स्तुति करुँगा|
Pronunciation
yah sanstutah sakala-vangaya- tatva-bodha-
d -ud bhuta- buddhipatubhih suralokanathaih|
stotrairjagattritaya chitta-harairudaraih
stoshye kilahamapi tam prathamam jinendram ॥ 2॥
Explanation (English)
Wise celestial lords, who have acquired wisdom from all the canons, have eulogized Bhagavan Adinath with Hymns bringing joy to the audience of three realms (heaven, earth and hell) I(Matungacharya, an humble man with little wisdom) shall be steadfast in my endeavour to eulogize that first Tirthankar.